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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :235
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :978-81-8143-985

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...

औरत = शरीर


'निःशब्द' फिल्म देख कर लौटी और सोचती रही कि क्या इसका उल्टा भी हो सकता था? साठ वर्ष की एक महिला के प्रेम में पड़ा है अठारह वर्षीय एक नौजवान! इस कहानी पर क्या कोई फिल्म बन सकती थी? नहीं! नहीं बन सकती थी। पुरुप चाहे कितना भी बूढ़ा हो, कितना ही कुरूप हो, वह पुरुष है। वह विराट है। वह महान है। इसलिए विराट के प्रेम में पड़ना आसान है। साठसाला औरत, चाहे वह कुछ भी हो, जितनी भी ज्ञानी हो, जितनी भी गुणी हो, जितने भी आकर्षक व्यक्तित्व की अधिकारिणी हो, उसका एक ही परिचय होता है-वह बूढ़ी है! शिथिल, झूलती, झुरींदार त्वचावाली बूढ़ी औरत। औरत का विचार उसके शरीर के अनुसार होता है। अगर शरीर ढल गया तो औरत की छुट्टी! पुरुष की छुट्टी नहीं होती। अमिताभ अपनी झुर्रियों समेत किसी किशोरी के प्रेमी हो सकते हैं, मेगास्टार के तौर पर समूचे हिन्दुस्तान में एकछत्र राज कर सकते हैं। माधवी अपनी झुरींदार त्वचा की वजह से और कुछ भले हो जायें, तारिका नहीं हो सकतीं। सौमित्र चट्टोपाध्याय अपनी झुर्रियों समेत, फिल्म-सितारा बने समूचा कलकत्ता शहर रौंदते फिर रहे हैं लेकिन सुचित्रा सेन को सालों-सालों से गृह-बन्दिनी रहना पड़ रहा है। रेखा के लिए भी अपनी झुर्रियाँ निर्मूल करके, टिके रहने की लाचारी है। अमिताभ को इसकी ज़रूरत नहीं पड़ती।

खैर, यह तो सिर्फ उदाहरण है। समस्या फिल्म जगत में नहीं है। समस्या समाज में है। औरतों का सौन्दर्य ही उनकी सम्पत्ति है, यह धारणा या विश्वास पूरी तरह राजनीतिक है। राजनीतिक कारण यही है कि यह पुरुषतान्त्रिक व्यवस्था को टिकाये हुए है। औरत की सुन्दरता को औरत की सम्पत्ति न मान लिया जाये, तो औरतों की शिक्षा, सचेतनता, बोध-बुद्धि, दक्षता, विलक्षणता वगैरह गौण न हो कर, प्रमुख हो उठेगी। अगर ऐसा हुआ तो पुरुषतन्त्र पर मुसीबत आ जायेगी। ॐ खिलौना या गुड़िया बनाकर उन्हें नियन्त्रण में रखना सम्भव नहीं होगा।

किसी भी व्यवस्था को अगर दीर्घकाल तक समाज में टिकाये रखना पड़े तो उसके पीछे ज़बर्दस्त और चतुर राजनीति काम करती है। शिशु के जन्म के बाद से ही लिंग-आधारित वैषम्य को बढ़ावा देना, उसके दिमाग़ में पुरुष आगे-औरत पीछे; पुरुप बुद्धिमान-औरत बुद्ध, पुरुष मालिक, औरत दासी होने की शिक्षा लूंस-ठूसकर भर देना, सामाजिक कर्म नहीं, राजनैतिक है। पुरुषतन्त्र या पुरुषवाद की राजनीति इतनी सख्त-पुख्ता है कि दुनिया के पूँजीवाद में भले दरार पड़ जाये, समाजतन्त्र टूटकर विखर जाये, लेकिन पुरुषतन्त्र जैसा था, उसी तरह खड़ा रहता है, पहले से ज़्यादा मज़बूत रूप में।

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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